Monday, July 27, 2020

16-6-20

[13:59, 7/10/2020] Baba 3: VCD 3279  प्रातः क्लास- 02.03.1968 
 व्याख्या ता. 16.06.2020 
समय:-00:00:10
प्रातः क्लास चल रहा था- 02 मार्च 1968, तीसरे पेज के मध्यांत में बात चल रही थी कि ऊँचे-ते-ऊँचा बाबा, वो हमको पढ़ाते हैं और समझाते भी हैं, तो फिर बुद्धि में बैठता क्यों नहीं है? ऐसे ऊँचे-ते-ऊँचे बाबा को फारकती क्यों दे देते हैं? कहते हैं माया फारकती दिलाए देती है। तो यही लड़ाई है, उनको गिराए देती है और अपना बनाए लेती है। तो सबको कह दियो- देखो, तुम सतयुग में, त्रेता में और द्वापर के आदि में भी कितने साहूकार थे, कितने सम्पत्तिवान थे। अभी तुम कितने कंगाल बन गए। तो देखो, इस सृष्टि के आदि-मध्य-अंत की बेहद की बातें सुनाते हैं ना! बेहद की बात तो बेहद का बाप ही सुनाएँगे। हद का बाप तो लौकिक बाप, वो तो एक जन्म का बाप है। वो बेहद की बातें कैसे सुनाएँगे? और ये धर्मपिताएँ, ये भी तो कोई ऑलराउण्ड पार्टधारी नहीं हैं ना जो बेहद की बातें सुनाए! तो ये बेहद का बाप है। तुम पैसे खर्चा करके सब खत्म कर दिया जो बेहद के बाप ने प्रॉपर्टी तुमको दी। अभी तुम देखो कि तुमको मालूम ही नहीं है कि ये सभी जो भी थे देवताएँ, उन देवताओं की आत्माएँ सब अभी तमोप्रधान बनी पड़ी हैं। क्योंकि बहुत जन्म के अंत की बात हो गई। अभी बहुत जन्म के अंत में हैं। और बाबा ने तो बताया ना कि बहुत जन्म के अंत के भी अंत में मैं आता हूँ। तो फिर वो बहुत जन्म किसके, किसका कहें कि बहुत जन्मों का अंत? ज़रूर कहेंगे देवताओं का। कौन-से देवताओं का? अरे, वो ही देवताओं का जो अव्वल नम्बर पहले-2 इस सृष्टिरूपी रंगमंच पर अतिन्द्रिय सुख भोगते हैं। उनमें भी जो अव्वल नम्बर है उसके अंत की ही बात है- बहुत जन्मों के अंत के भी अंत में।
[13:59, 7/10/2020] Baba 3: VCD 3279  प्रातः क्लास- 02.03.1968 
 व्याख्या ता. 16.06.2020 
समय:-00:04:48
तो समझा बहुत जन्मों का अंत कब हुआ? कब कहें? अरे, बहुत जन्मों का अंत उस ऑलराउण्ड पार्टधारी का कब हुआ? (किसी ने इशारा किया) कलियुग अंत! कलियुग तो कितना 1250 वर्ष चलता है, अंत में कब? 1976 में अंत कहेंगे? 1976 में जन्म लेते हैं? जन्म माने प्रत्यक्षता रूपी जन्म। तो क्या प्रत्यक्षता हो जाती है? ब्रह्माकुमार-कुमारियों में प्रत्यक्षता हो जाती है? सब में हो जाती है? हाँ, ब्राह्मणों की दुनिया में भी प्रत्यक्षता नहीं होता और जो कहते हैं कि हम सन्मुख पढ़ाई पढ़ते हैं, उनको भी माया वायडोरा खिलाती है कि नहीं खिलाती है? तो सदाकाल कहें कि उनको प्रत्यक्ष हो गया, प्रत्यक्षता रूपी जन्म हो गया? अरे, बच्चा जन्म लेता है लौकिक दुनिया में भी, तो जन्म लेने के बाद वो बाहर आता है ना! गुप्त था फिर बाहर आया। तो अभी क्या कहें? अभी गुप्त है, गुप्त पार्टधारी है या बाहर की दुनिया में प्रत्यक्ष हो गया? प्रत्यक्ष तो नहीं हो गया। तो देखो, वो बहुत जन्म लेते गए, बाकी तो ये उनका है सतयुग आदि। तो जब सतयुग आदि होता है तो अंत भी होता होगा पुरानी दुनिया का। तो कौन-सा टाइम कहें? 76 तो नहीं कह सकते, 36 भी नहीं कह सकते। क्या कहे? वो तो 2028 में कहें,  2018 में कहें? अच्छा! 2018 में जिनके सामने पहले प्रत्यक्ष होता है, 2017 में वो हड़कंप होता है ना! उस 2018 में प्रत्यक्ष जिनके सामने होता है, तो वो भी, उनको भी माया सुलाती है कि नहीं? तो प्रत्यक्ष हुआ? प्रत्यक्ष हुआ? क्या कहेंगे? अरे, प्रत्यक्ष हुआ? हुआ? सोते रहते हैं? शिवबाबा पढ़ाई पढ़ाते रहते हैं और समझाते रहते हैं और सन्मुख बैठने वाले सोते रहते हैं, तो प्रत्यक्ष हुआ? क्या कहेंगे? हुआ? अरे, हुआ कि नहीं हुआ? नहीं हुआ। हाँ। सो देखो ऐसे नहीं कहेंगे कि सतयुग का आदि और कलियुग का अंत हुआ सारी दुनिया के लिए। नहीं। अरे, ब्राह्मणों की दुनिया के लिए भी अंत नहीं कहेंगे 2018 में, कहेंगे? 28 में? हाँ, 28 में ब्राह्मणों की दुनिया में तो प्रत्यक्ष होगा। तो वो ब्राह्मणों की दुनिया, भक्तिमार्ग की दुनिया हुई जिनके बीच प्रत्यक्ष होगा, भगत हए या ज्ञानी हुए? क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का ज्ञान पूरा पक्का बुद्धि में बैठ गया? बैठ गया? हाँ। क्षेत्र माना हाँ, अर्जुन का रथ, शरीर रूप रथ जिसमें प्रवेश करते हैं, प्रत्यक्ष होते हैं और क्षेत्रज्ञ माना उस अर्जुन के मुकर्रर रथ को इस सृष्टि में पहले-2 किसने जाना? वो ही हुआ अव्वल नम्बर क्षेत्रज्ञ। कौन हुआ? एक अक्षर लिखो, कौन हुआ? (किसी ने इशारा किया) आ, ‘आ’ माने क्या? ‘आ’ माने तो बहुत कुछ होता। हाँ, इस सृष्टि में पहले-2 शिव, उसके सामने प्रत्यक्ष होगा। क्यों? क्योंकि वो ही तो जानकार है। वो ऑलरेडी सदाकाल का त्रिकालदर्शी है कि कभी है, कभी नहीं है? सदाकाल का। प्रजापिता तो कभी है और कभी, कभी नहीं है।
[14:00, 7/10/2020] Baba 3: VCD 3279  प्रातः क्लास- 02.03.1968 
 व्याख्या ता. 16.06.2020 
समय:-00:10:06
तो वो, जिनको ये ज्ञान नहीं है, तो उनको भक्त कहेंगे कि ज्ञानी कहेंगे? भक्त हैं। तो वो भक्तिमार्ग के लिए ये बाकी चित्र बनाते हैं। भई त्रिमूर्ति का चित्र बनाओ! चाहे बेसिक ज्ञान वाले भगत हों, चाहे एडवांस ज्ञान वाले भगत हों, भई चित्र बनाओ! अब चित्रों की दरकार है, भक्तों को होती है या जिनकी लगन लग जाती है उनके लिए होती है? उनके लिए थोड़े ही होती है। उनके तो दिल में बस गया। नहीं? हाँ, बस जाता है। उन्हें तो चित्रों की दरकार ही नहीं। तो ये चित्र जो हैं भक्तिमार्ग के लिए बनाते हैं। ये ड्रामा के प्लैन अनुसार ये भक्तिमार्ग का चित्र बनाना-करना है। और ये सामग्री तो फिर ड्रामा प्लैन अनुसार बननी ही है। क्या? ब्राह्मणों की संगमयुगी दुनिया में भी बननी है और जो भक्तिमार्ग का 2500 साल का टाइम होता है उसमें भी? उसमें भी बननी है और मनुष्य को भक्तिमार्ग द्वारा दुर्गति को पहुँचना ही है। 2500 वर्ष के भक्तिमार्ग में भी द्वापर-कलियुग में दुर्गति में पहुँचते हैं और बेसिक ज्ञान में जो भक्ति में चलते हैं, उनकी भी दुर्गति होती जाती है। और एडवांस जो कहते हैं कि हम एडवांस ज्ञानी हैं, एडवांस ज्ञान में चलते हैं, उनकी भी दुर्गति हो रही है कि सद्गति हो रही है? किसी की सद्गति हुई? कि अज्ञान नींद में सोए हुए हैं? सोए हुए हैं- ऐसे ही कहेंगे। तो दुर्गति से सद्गति में पहुँचना तो है। तो ये है ही भक्ति क्योंकि ज्ञान तो नहीं है कुछ भी। क्या ज्ञान? अरे, ज्ञान तो बताए दिया ना! अरे, गीता में भी बताए दिया, भक्तिमार्ग की गीता में, क्या? ज्ञान किसे कहेंगे? इतना ही ज्ञान है, क्या? क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ दो का ज्ञान हो गया तो ज्ञानी; और नहीं हुआ या घड़ी-2 माया मुगालते में डाल देती है, अनिश्चय में डाल देती है, तो क्या कहेंगे? ज्ञान हो गया? नहीं हुआ। हाँ; ज्ञान तो नहीं हुआ ना कुछ भी! ये शास्त्र पढ़ना, ये भी भक्ति है। क्या? हाँ। जब तक ये पढ़ते हैं शास्त्र छपे-छपाए तब तक क्या है? भक्ति है कि नहीं है? तब तक भक्ति-ही-भक्ति है। नहीं तो, शास्त्र पढ़ करके वो फिर क्या प्रवचन दिया, तो उसको ज्ञानी कहेंगे? शास्त्र पढ़ करके नहीं। बस जैसे धर्मपिताएँ अपना अधूरा ज्ञान सुनाते हैं तो ओरली सुनाते हैं या किताब पढ़ते जाते हैं, किताब पढ़ते जाते हैं और फिर, फिर सुनाते जाते हैं? कि डायरेक्ट सुनाते हैं? पढ़ते हैं क्या? कुछ पढ़ते तो नहीं। तो जब वो धर्मपिताएँ नम्बरवार होते हैं, वो ही नहीं पढ़ते हैं, वो डायरेक्ट ओरली सब कुछ भाषण देते हैं। पढे़-पढ़ाए नहीं होते हैं कुछ। होते हैं क्या? कोई शास्त्र पढ़े-पढ़ाए नहीं होते हैं। तो वो तो द्वापर-कलियुग के धर्मपिताएँ हैं जिन्होंने द्वापर-कलियुग में आ करके धर्म की स्थापना की और ये, ये ऊँच-ते-ऊँच बाबा कहाँ से धर्म की स्थापना करता है? कौन-से युग से? सतयुग आदि से ही। क्या सतयुग का आदि? हाँ, स्वर्णिम पुरूषोत्तम संगमयुग से। उसको कहेंगे सतयुग का आदि। तो ये पूजा करना, ये पढ़ाई पढ़ना ये सब क्या हुआ? क्या हुआ? भक्ति हुई कि ज्ञान हुआ? अरे, अपन लोग क्या कर रहे हैं अभी? अपन लोग क्या कर रहे हैं? अरे, क्या कर रहे हैं? भक्ति कर रहे हैं ना! अरे, भक्ति कर रहे हैं कि ज्ञानी बन गए? (किसी ने इशारा किया) ज्ञान, ज्ञानी बन गए? अच्छा! तो अब माया वायडोरा नहीं देती होगी? रावण-कुम्भकर्ण सुलाता नहीं होगा? सुलाता है तो काहे के लिए? तो तो माया का वायडोरा पड़ता है ना! क्योंकि कुम्भकर्ण भी तो रावण के अण्डर में होता है कि नहीं? छोटा भाई हुआ ना! हाँ।
[14:00, 7/10/2020] Baba 3: VCD 3279  प्रातः क्लास- 02.03.1968 
 व्याख्या ता. 16.06.2020 
समय:-00:15:30
तो देखो, ये पढ़ना करना, ये पूजा करना, पूजा माना? पूज्य किसको मानते हैं? जैसे बच्ची की शादी होती है, तो माँ-बाप जहाँ शादी करते हैं, उनकी पूजा करते हैं कि नहीं? करते हैं कि नहीं? हाँ, वो पूजनीय हो गए। उनकी पूजा करते हैं, उनकी चिरौरी करते हैं, उनको अच्छा-2 भोजन बनाए के खिलाते हैं, उनकी बहुत आवभगत करते हैं कि नहीं? हाँ। अब करना तो चाहिए एक शिवबाबा की। जो शिवबाबा कहता है- चाहे दुकाल पड़े, चाहे अकाल पडे़, चाहे कोई परिस्थिति हो जाए, तुम बच्चों की मैं परवरिश करूँगा। तुम बच्चे दुखी नहीं हो। कयामत में, कयामत की बात देखो मुसलमान के शास्त्रों में भी लिखी हुई है कि कयामत के टाइम पर अल्लाह ताला अपने बंदो को बडे़ आराम से रखेगा; कि दूसरे कोई रखेंगे? दूसरे कोई जिम्मेवारी लेंगे? दूसरे कोई जिम्मेवारी नहीं (...)। ये तो एक शिवबाबा ही है ..., कितनों को? कितनों को? अरे, जिनकी राजधानी स्थापन होगी उतनों को तो करेगा। कितनों की राजधानी स्थापन होगी? हाँ, तो अभी मालूम नहीं कितनों को पूछ रहे? मालूम भी है, फिर भी पूछते जाते हैं कि देखें इस पढंतरी, जो सामने बैठा हुआ है, बोल रहा है इसको मालूम है कि नहीं? अरे, पढंतरी भी तो भगत है ना! पढंतरी क्या है? पूजा करन्ति क्या है? कोई की पूजा करता है, चिरौरी करता है तो उसकी क्या नाम, क्या होती है? चमचागिरी करता है, मक्खनबाजी करता है कि नहीं? हाँ, तो कोई-2 की मक्खनबाजी करता है, तो इसका मतलब क्या हुआ, पूजा हुई कि नहीं? हाँ, पूजा करता है। तो ये सब भक्ति है। सो ये भक्ति जो है, वो तो सभी शास्त्र पढ़ते हैं भक्ति करने वाले और शिवबाबा कहते हैं- मैं तो कोई शास्त्र पढ़ करके तुमको नहीं सुनाता हूँ। शिव ज्योतिबिन्दु सदाशिव ज्योति जो है, कभी अंधेरा नहीं होता है उस आत्मा में। अंधकार होता है अज्ञान का? होता है? नहीं। तो वो कहते हैं मैं तो कोई शास्त्र थोड़े ही तुमको पढ़ाता हूँ। हाँ। अरे, शास्त्र हाथ में लेके पढ़ाता हूँ क्या? पढ़ाता हूँ? मैं कोई शास्त्र लेके नहीं पढ़ाता हूँ। बेसिक में पढ़ाता था क्या? बेसिक में भी मैं शास्त्र लेके नहीं पढ़ाता। ब्रह्मकुमारियाँ पढ़ाती होंगी। है ना! हाँ; और एडवांस में भी, एडवांस में भी जो अज्ञानी होंगे, भगत होंगे, चाहे अव्वल नम्बर भगत क्यों ना हो जिसने बहुत भक्ति की हुई हो, वो भी पढ़ करके सुनाएगा। अरे, हाथ में ले करके किताब या पुस्तक, कुछ भी, छपा हुआ मैटर या हाथ का लिखा हुआ वो पढ़ करके सुनाएगा कि ऐसे ही डायरेक्ट सुनाएगा धर्मपिताओं की तरह? हाँ, बताओ! (किसी ने इशारा किया) ब्रह्मा बाबा डायरेक्ट सुनाते थे? लो! हाँ, ब्रह्मा बाबा पढ़ेंगे; और, और राम वाली सुनाती है? राम वाली आत्मा सुनाती है? वो याद में नहीं रहती है? बाबा ने कहे कि शंकर क्या करता है? कुछ भी नहीं। अरे, ब्रह्मा वाली आत्मा तो कृष्ण का पार्ट हुआ जो शास्त्रों में भी बताया है। तो जब ब्रह्मा की आत्मा का पार्ट कृष्ण का हुआ, तो शंकर का किसका हुआ? राम का हुआ। तो राम वाली आत्मा सुनाती है, समझाती है, क्लैरीफिकेशन देती है? तो वो सुप्रीम सोल की बात है ना! हाँ। तो बताते हैं- मैं थोडे़ ही शास्त्र पढ़ता हूँ या पढ़ाता हूँ। मैं तुमको आ करके पतितों को पावन बनाने के लिए ज्ञान सुनाता हूँ। क्या? हाँ। ये काम और कोई दूसरी आत्मा करती है क्या अभी? अभी इस दुनिया में कोई दूसरी आत्मा करती है? हाँ, नहीं करती।
[14:01, 7/10/2020] Baba 3: VCD 3279  प्रातः क्लास- 02.03.1968 
 व्याख्या ता. 16.06.2020 
समय:-00:20:35
तो सो भी सिम्पल-2 बातें समझाता हूँ। क्या? वो शास्त्रों में तो कितना तिकड़म भिड़ाई है! बाल में से खाल, खाल में से बाल। तो ऐसे, ऐसे नहीं कि मैं कठिन करके समझाता हूँ। नहीं। बिल्कुल ही सिम्पल, क्या? कि भई अपन को ज्योतिबिन्दु आत्मा समझो। कहाँ? (किसी ने इशारा किया) हाँ। ऐसे नहीं कि तुम ज्योतिबिन्दु आत्मा समझो और कहो कि वो तो सारे शरीर में व्यापक है। नहीं। कहाँ है आत्मा? हाँ, भृकुटि मध्य में है। तो भृकुटि मध्य में जहाँ यादगार बिंदी भी लगाते हैं, पुरूष लोग टीका लगाते हैं, हाँ, पुरूष लोग टीका क्यों लगाते हैं? पुरूष लोग टीका इसलिए लगाते हैं कि पुरूष ही लड़ाई में जाते हैं। क्या? हाँ; और परूषों के लड़ाई में जाने से जीत होगी/ हो सकती है। अगर स्त्रियाँ लड़ाई में जाने लगीं तो क्या होगा? दोनों के बीच में माया घुस पडे़गी कि नहीं? हाँ। फिर वो मिलेट्री-पिलेट्री सब भूल जाती है। हाँ। तो बताया, मैं बहुत सिम्पल करके समझाता हूँ कि अपन को आत्मा समझो। अभी आत्मा तुम्हारी तमोप्रधान बनी है। क्यों? अरे, सुख भोगते-2 इस दुनिया के, दुख भी भोगते-2 तमोप्रधान बनी कि नहीं? हाँ, दुख भोगते-2 भी तमोप्रधान ज्यादा बनने लगी। तो जब आत्मा तमोप्रधान बनती है तो शरीर भी, शरीर भी तमोप्रधान। संग का रंग लगेगा कि नहीं? आत्मा भले अकालतख्त में है। मान लो जिसको कोई काल इस दुनिया में, चारों युगों में खाए नहीं सकता, खा सकता है? नहीं खा सकता। तो बताया, उसका शरीर, वो अकालतख्त भी अभी लक्कड़बुद्धि बना कि नहीं? वोही, तमोप्रधान कहें कि सतोप्रधान कहें? तमोप्रधान हुआ ना? हाँ, तमोप्रधान। तो आत्मा के साथ शरीर भी तमोप्रधान बने हैं। तुम देखो, अभी बाप को याद करो तो इस शरीर के बदली में जो देखते हो, इस शरीर के बदले में जो तुम देखते हो, आत्मा, तो तुम ये आत्मा ही बन जाएँगे। क्या? बाप को याद करते-2 तुम्हारे अंदर वो पावर आ जाएगी कि तुम सदाकाल आत्मा बन जाएँगे और आत्मा की ही स्मृति में रहेंगे। क्या? हाँ। देखो इसने शास्त्र लिखना शुरू कर दिया लम्बा-चौड़ा। क्या लिखा? हाँ, ज्ञान का मंथन करते रहते हैं, उनको तमोप्रधान तो नहीं कहेंगे। अच्छा! ये धर्मपिताएँ नहीं और ये; चलो वो तो धर्मपिताएँ हैं। ये जो विद्वान, पण्डित, आचार्य, संन्यासी हैं ये कुछ मन से सोचते करते नहीं हैं, मंथन नहीं करते? असुरों ने भी मंथन किया या नहीं किया? तो वो भगवान को पहचान लेते हैं? भगवान हो गए? मंथन करने से भगवान हो जाते हैं क्या? नहीं। अरे, मंथन करते हैं इससे तो साबित होता है कि मन के द्वारा मंथन करते हैं, तो उनका मन ज़रूर चंचल तो है। एकाग्र है? एक के आगे है लगातार? नहीं है। तो कहेंगे कि भई अभी वो आत्मा जो है वो सम्पूर्ण आत्मा बनी? कहेंगे? सम्पूर्ण तो नहीं बनी। तो कहते हैं अभी भी जब तक सम्पूर्ण नहीं बनी है, निरंतर ज्योतिबिन्दु की याद नहीं रहती है, आत्मिक स्थिति नहीं रहती है तो अभी तुम बाप को याद करो। वो अभ्यास अभी छोड़ने का नहीं है, अभी और करना है। नहीं करना? हाँ। तो इस शरीर के बदली में जो देखते हो, क्या? तुमको बाबा ने क्या बताया? तुम शरीर को देखो, क्या देखो? आत्मा को देखो। तो इस शरीर के बदले में जो तुम देखते हो, तो तुम ये आत्मा बन जाएँगे। निरंतर बन जाएँगे, सदाकाल के लिए बन जाएँगे या अंतर पडे़गा बीच-2 में? निरंतर बन (...)। अभी क्या होता है? अभी, अभी क्या होता है? अभी याद करने में अंतर पड़ता है कि नहीं? हाँ, अंतर पड़ जाता है।
[14:01, 7/10/2020] Baba 3: VCD 3279  प्रातः क्लास- 02.03.1968 
 व्याख्या ता. 16.06.2020 
समय:-00:26:09
तो तुम देखो, अभी बाप को याद करते रहो। अगर अच्छी तरह से समझ गए हैं और ममत्व मिट गया, काहे से? इस देह से, देह के संबंधियों से, देह के पदार्थों से जो ममता, मोह मिट गया है, पुराने सम्बन्धों से। ये पुराने सम्बन्ध हैं कि नहीं? हाँ, देह भी पुरानी है, देह के सम्बन्धी भी जन्म-जन्मान्तर के पुराने हैं कि नए हैं? हाँ, पुराने हैं। क्योंकि नया सम्बन्ध तुमको चाहिए ना! तो ज़रूर पुराने सम्बन्ध से बुद्धि का योग तोड़ना ही है। क्या? और इस सृष्टिरूपी रंगमंच पर जितने मनुष्यमात्र हैं सबको तोड़ना है या किसी को रह जाएगा? नहीं रहेगा? एक का नहीं रह जाएगा? एक का भी नहीं रहेगा? हाँ। जो एक कहा ना अकालपुरूष! तो वो अकालपुरूष भी जो है उसका शरीर भल रहेगा लेकिन उसमें ममत्व, माया, मोह नहीं रहेगा। तो ये पुराना जो शरीर है जड़जड़ीभूत, बीमार-धीमार, दुखी-रोगी, परेशान होता है कि नहीं? तो इससे सम्बन्ध बुद्धि का तोड़ना है और ये गाते भी आते हैं, क्या? कि बाबा जब आप आएँगे तब हम किसकी भी नहीं बनेंगी। क्या? क्या? क्या पक्का विरूद्ध धारण करेंगी? मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा ना कोई। ऐसे नहीं कोई बुलाने आए तो छम-4 पीछे-2 चली जाएँ। ऐसे करेंगी बिना बाबा से पूछे भी? ऐसे करेंगी? नहीं करेंगी। हाँ, तो मैं जब बाप आप आएँगे तब हम किसकी भी नहीं बनेंगी, ना बनेंगी और ना उनके पीछे भागेंगी। नहीं तो, नहीं तो क्या होता है? बहुतों की बनी हुई रहती है। क्या? ऐसे नहीं कि कोई एक, कोई एक ही होता है जिसके पीछे भाग पड़े। नहीं। बहुतों की बनी रहती। बनी रहती हैं कि नहीं? हाँ। पति की, स्त्री की, चाचे की, मामे की, भाई की, बाबे की, डाडे की, अरे देखो, कितने सम्बन्ध हैं! सब के पीछे भागते हैं कि नहीं? चलो हाथ-पाँव से कभी किसी के पीछे ना भागते हो, बुद्धि भागती है कि नहीं? अरे, मन-बुद्धि भागती है कि नहीं? हाँ, मन-बुद्धि तो भागती है। तो देखो कितने सम्बन्ध हैं! देखो! आत्मा कहती है कि बाबा आप जब आएँगे ना, तो मैं आपसे ही बुद्धि का योग जोड़ूँगी और सब देहधारियों से तोड़ूँगी। तो कितने साल हो गए ये प्रैक्टिस करते-2, कितने साल हो गए अभी? बाबा को आए कितने साल हो गए? बाबा को आए 80 साल से भी ऊपर हो गए। 2 साल और पार हो गए। अच्छा, हम ज्ञान में आए तो हमको भी तो कुछ टाइम हो गया ना! सबका अपना-2, अलग-2 टाइम है।
[14:02, 7/10/2020] Baba 3: VCD 3279  प्रातः क्लास- 02.03.1968 
 व्याख्या ता. 16.06.2020 
समय:-00:30:06
तो बताया कि जबसे तुम ये ज्ञान सुनते आए हो, तो तुम्हारा देहधारियों से बुद्धियोग टूटा है? अनुभव करते हो, टूटा है? कोई नहीं कहेगा हमारा बुद्धियोग और देहधारियों से टूट गया और एक देहधारी से ही लगा हुआ है जिसमें मुकर्रर रूप से शिवबाबा प्रवेश करते। ऐसा है? हाँ, माया पहचानने ही नहीं देती। क्या? पहचानने देती? माया पहचानने नहीं देती, बीच-2 में वायडोरा डालती रहती। तो ये माया बुद्धियोग तोडे़गी, क्या? हाँ, जब तक तुम पक्के नहीं बने हो तब तक क्या करेगी माया? बुद्धियोग तोडे़गी। अब ये करते हैं, देखो भक्तिमार्ग में अंजाम किया हुआ है- बाबा आप आएँगे तो हम आप के ही बनेंगे, और किसी के नहीं बनेंगे। तो सो बाप वो अंजाम, वो तुम्हारी प्रतिज्ञा जो भक्तिमार्ग में तुमने की और अभी भी कर रहे हो, वो अंजाम तुम्हें याद दिलाते हैं अभी संगमयुग पर। जन्म-जन्मान्तर का तुम्हारा ये अंजाम है, ऐसे नहीं कोई एक जन्म का है। एक जन्म का है? एक जन्म का नहीं है। क्या अंजाम है? कि जब आप आएँगे, हम सिर्फ़ आपको ही, आपके साथ ही बुद्धियोग जोड़ेंगे। कि बाबा कहते हैं- मुझे/ मेरे साथ बुद्धियोग जोड़ने से तुम्हारे सब विकर्म, सब पापकर्म जो भी तुमने विपरीत कर्म किए हैं, बाबा ने जो बताए वो सब नष्ट हो जाएँगे। सब भस्म हो जाएँगे मेरी याद से और फिर तुम, फिर तुम क्या बन जाएँगे? फिर तुम ये, क्या? ये लक्ष्मी-नारायण जैसे बन जाएँगे। कैसे बन जाएँगे? ये लक्ष्मी-नारायण आपस में भी एक-दूसरे को देखते, देह को, आँखों को देखते हैं? हाँ, नहीं देखते। तो ऐसे ही तुम भी बन जावेंगे। नहीं बनेंगे? बनेंगे! हाँ। ऐसे बनेंगे माने इन लक्ष्मी-नारायण की जो राजधानी स्थापन होती है, उस राजधानी के तुम भी भाँति बनेंगे या नहीं? हाँ, अतिप्रिय सुख देने वाली जो राजधानी है तुम भी उसके भाँति बनेंगे। तो ये तो तुम्हारी मुख्य एम-ऑब्जेक्ट है। क्या? क्या, मुख्य एम-ऑब्जेक्ट? कि हम भी ऐसे नर से नारायण बनेंगे। नर से प्रिंस नहीं बनेंगे जो गर्भ से जन्म लेना पडे़ बच्चे के रूप में। क्या बनेंगे? नर से डायरेक्ट नारायण, नारी से डायरेक्ट आदिलक्ष्मी जैसे बनेंगे। ओम शान्ति!
[14:04, 7/10/2020] Baba 3: VCD 3279  प्रातः क्लास- 02.03.1968 
 व्याख्या ता. 16.06.2020 
समय:-00:33:46
 जिज्ञासु - वो धर्मपिताएँ जो मंथन करते हैं ना! 
 बाबा - धर्मपिताएँ मंथन करते हैं। हाँ। मंथन करते हैं वो? 
बाबा- तो जैसे डायरेक्ट ...
बाबा- मंथन तो उन्होंने संगमयुग में किया था। कब किया? 
 जिज्ञासु - संगमयुग में। 
 बाबा - 5000 वर्ष पहले जो मंथन किया वो उनकी आत्मा में, क्या? रिकॉर्ड हो गया कि नहीं? हाँ, तो जो रिकॉर्ड हुआ पड़ा है, उन्हें मंथन करने की क्या दरकार? जिज्ञासु - हाँ जी। 
 बाबा - वो सुनाते चले जाएँगे कि मंथन करके सुनाएँगे? 
 जिज्ञासु - सुनाते जाएँगे। 
 बाबा - सुनाते चले जाते! 
 जिज्ञासु - हाँ; लेकिन वो जो मंथन करते हैं वो सही है या गलत है, ये निर्णय करने के लिए उनके अंदर शिव बाप नहीं होते हैं। 
 बाबा - हाँ। 
 जिज्ञासु - यहाँ साकार जो मंथन करता है, तो वो जो भी बोलता है उनका रिस्पॉन्सिबल मैं हूँ ये बताया है ना! 
 बाबा - हाँ। 
 जिज्ञासु - तो वो जो कुछ भी बोलता है उसको शिव बाप साथ में बैठा है अकालतख्त में वो सही कर ही लेंगे ना! 
 बाबा - कर लेंगे, गे-2; लेकिन अभी स्थिति क्या है उसकी? 
 जिज्ञासु - जब मंथन करते हैं तो तमोप्रधान नहीं कह सकते हैं ना बाबा? 
 बाबा - तमोप्रधान नहीं कह सकते? 
 जिज्ञासु - जो विचार सागर मंथन करते हैं वो। 
 बाबा - तो ये किसने कहा कि कर सकते हैं कि नहीं कर सकते हैं, तमोप्रधान कहेंगे? लेकिन ये तो है कि पढ़ाई पढ़ करके, किताब पढ़ करके सुनाते हैं कि वो ज्ञानी बन गए? धड़ाधड़-2 धर्मपिताओं की तरह बोलते जाते हैं? 
 जिज्ञासु - जो किताब पढ़ते हैं वो तो ब्रह्मा बाबा पढ़ते हैं। 
 बाबा - ब्रह्मा बाबा पढ़ते हैं? और ब्रह्मा बाबा पढ़ते हैं तो वो क्या करते हैं जिनका मुकर्रर रथ है? वो क्या करते हैं? 
 जिज्ञासु - याद में बैठते हैं ऐसे बोला है लेकिन सिर्फ़ याद भी। 
 बाबा - अभी तो कह रहे हैं कि वो पढ़ता है, वो ही बोलते हैं ब्रह्मा बाबा। 
 जिज्ञासु - याद भी वही कर सकते हैं जिसके अंदर पूरा ज्ञान हो। 
 बाबा - अरे, तुम याद नहीं कर सकते? 
 जिज्ञासु - निंरतर! 
 जिज्ञासु - पहचान कर याद करना और अभी जितने लोग याद कर रहे हैं, कितने लोग अनिश्चयबुद्धि भी हो जा रहे हैं ना! 
 बाबा - कैसे पता चले कौन है वो इस सृष्टिरूपी रंगमंच पर जो पूरा; ये तो अंदर की बात है। कैसे पता चलेगा किसी को? तुम्हें पता चल गया क्या? 
 जिज्ञासु - वो जैसे 
 बाबा - पता चल गया तुमको? 
 जिज्ञासु - अनुभव करते। 
 बाबा - अनुभव करते! सदाकाल अनुभव करते हो कि माया बीच-2 में अनिश्चयबुद्धि बनाएती है?
[14:06, 7/10/2020] Baba 3: जिज्ञासु - माया बीच-2 में अनिश्चयबुद्धि बनाती है। 
 बाबा - तो तुम निश्चयबुद्धि बना बना ना बना, बराबर हो गया। कख का चोर सो लख का चोर। कि ज्ञान का साहूकार बन गया? नहीं। हाँ। फिर बताओ, राम वाली आत्मा, कुछ लोग तो कहते हैं कि वो भगवान हो गई, वो ही भगवान है। कोई निराकार भगवान कब अलग से होता ही नहीं। और तुम भी कहते हो हाँ, वो भगवान है। 
 जिज्ञासु - शिव बाप रिटायरमेण्ट लिया तो ज़रूर कोई उनके समान कोई-ना-कोई बना होगा तभी तो रिटायरमेण्ट लिया? 
 बाबा - समान बना होगा कि थोड़ा-बहुत जानकार बना होगा, तो थोड़ा-बहुत जानकार होगा तो फिर कुछ-ना-कुछ पढ़ करके सुनाएगा कि नहीं? तो पढ़ करके ही सुनाता है, भक्ति ही कर रहा है कि ज्ञानी हो गया? 
 जिज्ञासु - थोड़ा-बहुत जानकार होगा तो उनके ऊपर शिव बाप अधूरे ज्ञानी को उनकी जगह पर बिठाकर रिटायरमेण्ट लेंगे क्या? 
 बाबा - गें-5! बस बच्चों की तरह गें-7! गें करते रहोगे। गें-2 से काम चलेगा? अभी वर्तमान में क्या स्थिति है? अभी वर्तमान में भगत हैं सब कि कोई ज्ञानी है?
 जिज्ञासु - भगत। 
 बाबा - उसको भगवान मिल गया इसलिए बोल रहा है। मिल गया ना तुमको? अरे चुप! बाबा ने भी कहा सबसे भली चुप। कोई छाती ठोक के कह सकता है कि मुझे भगवान मिल गया। कहते तो बहुत हैं, कोर्स देते हैं तो कहते हैं, संदेश देते हैं तो कहते हैं। कहते हैं कि नहीं? हाँ, लेकिन वास्तव में क्या किसी को मिल गया कि बीच-2 में अनिश्चय पैदा होता रहता है? 
 जिज्ञासु - अनिश्चय पैदा होता रहता है। 
 बाबा - लो! तो फिर वो नीम हकीमे खतरे जान। कैसे, कैसे हकीम बने, कैसे डॉक्टर बने, कैसे वैद्य बने? खतरा पैदा करने वाले नीम हकीम बने या पक्के हकीम बन गए, पक्के वैद्य बन गए, पक्के डॉक्टर बन गए? 
 जिज्ञासु - खतरा पे(...)। 
 बाबा - खतरा(...)। ऐसे ही हुआ ना! और सारे ही ऐसे हैं कि नहीं? सारे ही हैं। अब क्या करें? माताजी तो विचार करने लगीं दोनों अब क्या करें? क्या करे क्या? ये तो निश्चयबुद्धि की परीक्षा है। कौन कब तक डटे रहते हैं। कोई पहले ही भाग खडे़ होंगे, भागन्ती हो जाएँगे और कोई? 
 जिज्ञासु - बाद में। 
 बाबा - कोई? 
 जिज्ञासु - बाद में। 
 बाबा - बाद में भागेंगे। तो ज्यादा नम्बर किनको मिलेंगे? 
 जिज्ञासु - बाद में। 
 बाबा - जो बाद में भागेंगे उनको ज्यादा नम्बर मिलेंगे। और जो पहले भागेंगे? 
 जिज्ञासु - कम। 
 बाबा - उनके नम्बर तो डिक्लेयर हो गए कि भई वो तो माला में नीचे वाले मणके बनेंगे, ऊँचे वाले तो बनने वाले नहीं। चलो!
वार्तालाप प्वाइंट            वार्ता न. 1251

स्टूडेन्ट- ये सप्त स्वर क्या हैं? राधा सप्त स्वर बजाती है।

 बाबा - सात नारायण हैं ना। तो सात नारायण सात प्रकार का ज्ञान सुनावेंगे या एक ही प्रकार का ज्ञान सुनावेंगे?

स्टूडेन्ट - सात। 

बाबा - सात प्रकार का ज्ञान सुनाते हैं तो उनके सात स्वर हो गये। राधा सम्पन्न स्टेज का नाम है, संगमयुगी पुरूषार्थी का नाम है और सरस्वती? सरस्वती किसका नाम है? किसको फालो किया? अधूरे ब्रह्मा को फालो किया तो वो एक ही तार में बोलेगी या सात स्वर में बोलेगी? 

स्टूडेन्ट - एक ही तार।

बाबा - एक ही ब्रह्मा का तार। जो ब्रह्मा ने बोला वो, सो सरस्वती बोलेगी।
समयः-17ः03-18ः08
बाप आकर पढ़ाई पढाते हैं, किसी को डंडे मारते है क्या ? स्थूल डंडे मारते है ? नहीं। बातों के डंडे , जिसके लिए कहा गया है लातों के देवी बातों से नहीं मानती। तो जब तक पढ़ाई का पीरियड है तब तक शांति से पढ़ाई पढ़ाते हैं, जब देखते है कि अब पढ़ाई  पूरी हुई और पढ़ाई जितना पढ़नी थी सबने पढ़ ली, और पहला संगठन डिक्लेयर होता है, और उसके बाद लड़ाई शुरू हो जाती है। जिसने जितनी धारणा की है, उतनी धारणा रह जाती है। और फिर संघर्ष शुरू। संघर्ष के बीच , जिसने जितनी पढ़ाई पढ़ी है उतना ही कामयाब होगा जिसने जितना पुरूषार्थ किया है अपनी आत्मा को स्थिर करने का उतना ही स्थिरयम रहेगा।  नहीं तो हिल  जावेगा। खुद हिलेगा तो राजाई भी हिल जावेगी। कुछ ना कुछ अनिश्चयबुद्धि हो जावेगा।  अनिश्चयबुद्धि होगा तो माला का मणका नीचे खिसक जावेगा।  इसलिए बोला है अनिश्चयते  बुद्धि विनश्यते । विनश्यते का मतलब आत्मा का खल्लासा नहीं होगा। देह खल्लास नहीं हो जावेगी । पद नीचा होता जावेगा।  
Vcd - 327

No comments:

Post a Comment

బ్లాగ్ సందర్శించినందుకు ధన్యవాదాలు. త్వరలో మా స్పందన తెలుపగలము.

Featured Post

ఆధ్యాత్మిక విశ్వ విద్యాలయం ఫరుఖాబాద్. ఉత్తర్ ప్రదేశ్.

ఆధ్యాత్మిక విశ్వ విద్యాలయం ఫరుఖాబాద్. ఉత్తర్ ప్రదేశ్. ఒక సంక్షిప్త పరిచయం ఇక్కడ కింద తేదీలు పుట సంఖ్యలు ఇచ్చినవి గురువు గారి ప్రవచనా...